चीन पर बात क्‍यों नहीं करना चाहती मोदी सरकार

चीन के मसले को नेताओे और नौकरशाहों के हवाले करने की कीमत देश ने चुकाई है

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महेंद्र सिंह

संसद का सत्र चल रहा है। 9 दिसंबर को तवांग में भारतीय सेना और चीन सेना मेे झड़प हुई। रक्षा मंत्री ने लोकसभा में इस पर जानकारी दी। लेकिन विपक्ष चीन के मसले पर संसद में चर्चा करना चाहता है। पर सरकार इस मसले पर चर्चा को तैयार नहीं दिखती है। सरकार रक्षा का संवेदनशील मसला होने का हवाला दे रही है।

चीन का सीमा पर आक्रामक रवैया

एलएसी पर चीन आक्रामक है। ये बात हर भारतीय और पूरी दुनिया जानती है। भारतीय सेना भी चीन से लगती लगभग 3.500 किलोमीटर सीमा पर तैनात है। चीन की साजिश को विफल करने के लिए ऐसा करना जरूरी भी है। इसके अलावा सीमा पर हर जरूरी हथियार और साजा सामान की तैनाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार चीन के साथ रिश्‍तों की जटिलता पर खुल कर बात क्‍यों नहीं करना चाहती है।

शुतुरमुर्ग वाले रवैये से नुकसान

सेना से लेकर सरकार के मंत्री तक बयान देते हैं कि ये 1962 का भारत नहीं है ये 2022 का भारत है। फिर 2022 का देश की सुरक्षा के लिए पैदा हो रहे गंभीर मसले पर बात क्‍यों नहीं कर रहा है। 1962 के बाद देश की लगभग हर सरकार ने चीन के मसले पर शुतुरमुर्ग वाला रवैया अपनाया। इसी का नतीजा है कि चीन सीमा पर आक्रामक है।

विपक्ष और जनता को सच जानने का अधिकार

ये बात तो सब जानते हैं कि सीमा पर जंग छेड़ देना अभी भारत और भारतीय इकोनॉमी के लिहाज से सही नहीं है। लेकिन इस मसले को नौकरशाहों और नेताओं के भरोसे छोड़ देने की कीमत देश ने चुकाई है और चुकानी पड़ रही है। मोदी सरकार को इस बात को समझना होगा कि चीन से लगती सीमा पर क्‍या हो रहा है इसे जानने का अधिकार विपक्षी राजनीतिक दलों को भी है और आम जनता को भी।

ये सूचना क्रांति का दौर है। इस दौर में सूचनाएं छिपती नहीं है। ऐसे दौर में जब सेटेलाइट से चप्‍पे चप्‍पे की तस्‍वीरें इंटरनेट पर आ जाती है आप रक्षा क्षेत्र की संवदेनशीलता का हवाला देकर जानकारी छिपा नहीं सकते। सरकार को विपक्ष और आम लोगों को विश्‍वास लेना होगा। देश में चीन के खिलाफ जनमत का सुर एक होना चाहिए। लेकिन ये तभी होगा सरकार विपक्ष को भी विश्‍वास में लेगी।

संसद में खुली चर्चा से नुकसान क्‍या है। आप संसद में सेना की रणनीति न बताएं। लेकिन विपक्ष के सवालों का जवाब देने में दिक्‍कत क्‍या है। अगर सरकार संसद में चर्चा से बचती रही तो विपक्ष के साथ आम जनमानस में इस मसले पर सरकार की कमजोरी का मैसेज जाएगा। ये मैसेज मोदी के 56 इंच के सीने वाली इमेज के ठीक नहीं होगा।

सेना ने चीन को दिया है जवाब

1962 की हार की टीस हर देशवासी के मन में है। लेकिन इसके बाद हुई चीन झड़पों में हमारी सेना चीन की सेना पर भारी पड़ी है। चाहे 1967 की झड़प हो या राजीव गांधी के कार्यकाल में चीन के साथ सीमा पर तनाव रहा है भारतीय सेना ने दमखम दिखाया है। ऐसे में चीन के सामने जरूरत से ज्‍यादा रक्षात्‍मक रूख अपनाने का क्‍या मतबल है। खास कर तब जब मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही चीन की सीमा पर ब्रम्‍होस मिसाइल की रेजीमेंट तैनात कर दी थी।

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