महेन्द्र सिंह
नए साल का पहला दिन। 2023 का पहला रविवार। साल नया है लेकिन उम्मीदें और मुश्किलें वही पुरानी हैं। साल दर साल। नए वादे और फिर वादों का जुमलों में बदल जाना। ऐसा ही एक वादा सरकार आपने किसानों से किया था। 2022 में किसानों की आमदनी दोगुनी करने का। सरकार आपने कैसी कंडीशनिंग कर दी है कि 2022 बीत गया और 2023 आ गया। लेकिन किसानों को ही याद नहीं आ रहा कि आपने उनसे कोई वादा किया था। ये तो कमबख्त अपनी आदत ही ऐसी है कि किसानों को आज साल के पहले ही दिन याद दिलाने बैठ गया कि किसानों, सरकार ने आपसे कोई वादा किया था।
किसान की आमदनी दोगुनी करने का वादा
जाहिर है कि किसान तो आपसे हिसाब लेगा नहीं कि आपके वादे का क्या हुआ। या हिसाब लेगा तो आम चुनाव 2024 में। लेकिन इसमें तो अभी एक साल है। लेकिन किसानों की तरफ या आपके वादों की पड़ताल करने का काम हमारा है। यानी मीडिया का। ये काम हम करने की कोशिश कर रहे हैं। तो हम बात कर रहे थे कि आपके उस वादे का जिसमें आपने कहा था कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाएगी।
हमें आपके इस हुनर पर भी कोई शक नहीं है कि आप खुद और आपके प्रवक्ताओं की फौज ये साबित कर देगी कि आपने किसानों की आमदनी दोगुनी कर दी है। और किसान को भी ये यकीन हो जाएगा कि आप सही कह रहे हैं, उसी का हिसाब गड़बड़ है कि वो हिसाब ही नहीं लगा पा रहा है कि उसकी आमदनी दोगुनी हो गई है।
अपनी महान उपलब्धि पर चुप क्यों हैं, सरकार
अब ये तो किसान जानें कि उनकी आमदनी दोगुनी हुई कि नहीं। हमें रंज इस बात का है कि आप और आपके प्रवक्ताओं ने इस महान उपलब्धि का उतना प्रचार प्रसार नहीं किया। सिर्फ कुछ लाइनों में ये बात समेट दी। हमें उम्मीद थी कि आप अपने इस कारनामे का बखान वैसे ही करेंगे जैसे अपने दूसरे कारनामों का किया है। सरकार, आपने तो ‘मन की बात’ में भी इस बात का जिक्र नहीं किया कि आपने किसानों को खुशहाली की नई सौगात दी है।
अपनी पूंजी बचाने की जद्दोजहद
खैर, जो भी थोड़ी बहुत खेती-किसानी मैं जानता हूं और देखता हूं। उसके हिसाब से कह रहा हूं कि किसानो को शायद आपका वादा याद ही नहीं है। उनके सामने तो सारी जद्दोजहद किसानी में लगी अपनी पूंजी को बचाने की है। अगर मौसम की मार से उनकी फसल बचती है तो छुट्टा जानवर घात लगाए बैठे हैं। और इन जानवरों से अपनी फसल बचाने के लिए किसान दिन और रात खेत में मुस्तैद रहते हैं। जैसे एलएसी पर हमारे जवान दिन और रात मौसम की परवाह किए बिना चीन की हर चाल का माकूल जवाब देने के लिए मुस्तैद रहते हैं उसी तरह से किसान छुट्टा जानवरों से अपनी फसल बचाने के लिए मुस्तैद रहता है। और जो मुस्तैद नहीं रह सकते हैं उन्होंने खेती से ही तौबा कर ली है। यहां सिर्फ किसान ही नहीं,उसका पूरा परिवार अपने खेत में मुस्तैद है। बारी बारी से। क्योंकि ये उसके लिए जीने मरने का सवाल है। शायद आपको पता नहीं होगा कि अगर किसान अपनी जरूरत के लायक अनाज अपने खेत में पैदा नहीं कर पाता तो ये उसके लिए शर्मिदगी की बात होती है। क्योंकि उसे कुछ और आता नहीं। उसने जीवन में यही किया। अपने खेत में खेती करना और खेती से अपनी जरूरतें पूरी करना।
अन्नदाता को ही मुफ्त राशन की सौगात
हालांकि आपने मुफ्त राशन की योजना भी चला रखी है कि लेकिन एक स्वाभिमानी किसान के लिए मुफ्त राशन लेने से बुरा कुछ और नहीं हो सकता,सरकार। यहां सवाल आपकी नीयत का नहीं है। मु्फ्त राशन के लिए जरूरतमंद बहुत हैं इस देश में। उनके लिए ये स्कीम बहुत काम की है। लेकिन मुफ्त राशन की स्कीम से किसान का नाम न जोड़ें। किसान और मुफ्त राशन एक साथ अच्छे नहीं लगते। और किसानों को ये बात बहुत बुरी लगती है कि उसके स्वाभिमान के साथ मुफ्त राशन का मजाक किया जाए।
आप उसी किसान को मुफ्त राशन देने की बात कह रहे हैं, जिस राशन को उसने अपना सब कुछ दांव पर लगा कर पैदा किया है और बड़ी मशक्कत से सरकारी खरीद केंद्र पर या लोकल बनिया को बेचा है जिसकी बदौलत आप मुफ्त राशन की स्कीम चला रहे हैं। तो सरकार, ये जुल्म मत करिए। उसी अन्नदाता को मु्फ्तखोर मत कहिए जो आपका भी पेट भर रहा है। बाकी फिर कभी।