भारतीय रेल : अब बेच ही डालो

दिल्ली से गोरखपुर आना 'पहाड़' हो गया। पहाड़ माने आफत, सांसत, दुश्वारी। हम मैदानी लोग सरल ज़िंदगी जीने वाले हैं। पहाड़ पर जीवन जीना कितना कठिन होता है, इसके भाव को ही पहाड़ शब्द दे दिया।

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रवि राय

दिल्ली से गोरखपुर आना ‘पहाड़’ हो गया। पहाड़ माने आफत, सांसत, दुश्वारी। हम मैदानी लोग सरल ज़िंदगी जीने वाले हैं। पहाड़ पर जीवन जीना कितना कठिन होता है, इसके भाव को ही पहाड़ शब्द दे दिया। वाकई अब लोग-बाग कहने लगे हैं कि भारतीय रेल भी BSNL की तरह बर्बाद करो फिर बेचो की राह चल पड़ी है। अंग्रेजों का ‘बांटो फिर राज करो’ की तर्ज़ पर ।

गोरखधाम 12556 सुपर फास्ट एक्सप्रेस भटिंडा से गोरखपुर चलती है। नई दिल्ली स्टेशन पर रात 9 बजे पहुंचकर 9:25 पर छूटती है । यह अगले दिन सुबह 9:45 पर गोरखपुर पहुंचती है।यानी 780 किमी की यात्रा कुल 12 घण्टे 20 मिनट में। टिकट ₹1680 जबकि आनंदविहार से हमसफ़र का टिकट ₹1410 का है। फर्क एसी टू और थ्री का , अन्य खर्च अलग।

गोरखधाम 5 जनवरी को मुझे नई दिल्ली से गोरखपुर के लिए पकड़नी थी। अकेले तो अक्सर जाता ही रहता हूँ पर बहुत दिन के बाद सपरिवार अपने गृहनगर गोरखपुर जाना है। ऐप पर देखा तो भटिंडा से ही एक घण्टे लेट , मगर साथ में यह चेतावनी भी कि ऐप के बताने पर भरोसा न करें, ट्रेन लेट टाइम को कवर भी कर सकती है।ग्रेटर नोएडा से दिल्ली की कच्चाइन भरी ट्रैफिक में से होते हुए आने की सांसत अलग से।

सब सोच समझ कर शाम 7 बजे घर छोड़ रण को निकल पड़े।ठीक साढ़े आठ पर हम दोनों नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के 6 नम्बर प्लेटफार्म की एक बेंच हथिया कर बैठ गए। सर्दी की वजह से भीड़ भी अपेक्षाकृत कम थी।

अगल-बगल के प्लेटफार्म पर जबतक कोई ट्रेन खड़ी रहती ,ठंड थोड़ी कम , पर ट्रेन हटते ही बर्फ़ीली हवा जैसे छेदकर मुआ दे रही थी। अगोरते-अगोरते रात 10:41 पर हमारी ट्रेन प्लेटफार्म पर लगी और 11 बजे छूटी। दिल्ली से गोरखपुर के बीच इसके कुल 7 स्टॉपेज हैं- कानपुर, उन्नाव ,लखनऊ,बाराबंकी, गोंडा, बस्ती और ख़लीलाबाद।

ट्रेन में अपनी बर्थ पर आते के साथ कम्बल चादर तान कर सोना था। खाना घर से ही खाकर चले थे।रात करीब तीन बजे आंख खुली । इटावा में ट्रेन न जाने कबसे खड़ी थी।फिर तो स्टेशन गिनते गिनते थक गए।शायद गोविंदपुरी से करनैलगंज तक को नहीं छोड़ा इस ट्रेन ने, बिना रुके ।

समझ में नहीं आता कि रात में तो कोहरा था, दिन में कचक कर धूप निकलने के बावजूद क्यों हमारी ट्रेन की ऐसी दुर्दशा हुई ? पचहत्तर कारण गिना लो , पर भाई जो सांसत किये हो न , तो अब यही कहना पड़ेगा कि रेतो मत, एक झटके में खल्लास करो।

खरवा खात पनिया पीयत किसी तरह शाम 4:55 पर दोनों परानी को दुनिया के सबसे बड़े रेलवे प्लेटफार्म वाले गौरवशाली गोरखपुर के प्लेटफार्म नम्बर 5 पर गोरखधाम से पांव रखने का सौभाग्य मिला। नील आर्मस्ट्रॉन्ग जैसी ही स्ट्रांगली फीलिंग हुई। अठारह घण्टे ट्रेन में बिता कर।

सामान अधिक था, सोचा लिफ्ट से निकल लें। पहले तो ओवरलोड से लिफ्ट चली ही नहीं। लिहाजी प्रवृत्ति की श्रीमती जी बाहर आ गईं। मैं अंदर ही था तभी लिफ्ट चालू हो गई।मैं ओवर ब्रिज पर सामान लिए पहुंच कर बाट जोहता ही रहा। थोड़ी देर में देखा कि एक बैग उठाए सीढ़ियों से डगर – मगर करती चली आ रही हैं-
“अरे क्या बताएं ? लिफ्ट देर तक तो नीचे आई ही नहीं। आई तो फिर चली ही नहीं। हद हो गई ! ”
अब बेच ही डालो!

( ये लेखक के अपने विचार हैं, peoplesstake.in का इससे सहमत होना ज़रूरी नही है )

 

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