इकबाल बुलंद करो जनता जनार्दन

सत्‍ता में बैठे नेताओं के असंवेदनशीन बयान आम जनता के इकबाल को चुनौती दे रहे हैं

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⇒ महेन्‍द्र सिंह

लोकतंत्र में जनता जनार्दन है। भारत में लोकतंत्र कम से कम 75 साल पुराना हो चुका है। ऐसे में जब एक राज्‍य का मुख्‍यमंत्री जहरीली शराब से 60 से ज्‍यादा मौतों पर ये बयान देता है कि जो पिएगा वो मरेगा ही तो उस नेता की मानसिकता पर सवाल कम उठता है सवाल जनता जनार्दन पर उठता है। 75 सालों में क्‍या लोकतंत्र इसी तरह से परिपक्‍व हुआ है कि एक राज्‍य का मुख्‍यमंत्री इतने बड़े पैमाने पर हुई मौतों पर इतना असंवेदनशील बयान दे। और वो मुख्‍यमंत्री जो अपने राज्‍य में जहरीली शराब के कारोबार को रोकने में अक्षम साबित हो रहा है।

जी हां यहां बात बिहार के सुशासन बाबू नीतीश कुमार की और उनके शर्मनाक बयान की हो रही है। असंवदेशीलता की कड़ी में नीतीश कुमार इकलौते नेता नहीं हैं जिन्‍होंने सत्‍ता के मद में चूर हो कर इस तरह का बयान दिया है। आज से लगभग 30 साल पहले प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इंदिरा गांधी की हत्‍या के बाद 84 के दंगों पर कहा था जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है। उस समय आम जनता तक सूचनाओं की पहुंच आसान नहीं थी। ऐसे में उस समय इस बयान पर आम जनमानस की वैसी प्रतिक्रिया नहीं हो सकती थी जैसी होनी चाहिए थी। ऊपर से इंदिरा गांधी की हत्‍या से आम जनमानस क्षुब्‍ध था।

इसके बाद से समय समय पर लगातार ऐसे बयान आते रहे हैं जो बताते हैं कि देश में जैसेजैसे लोकतंत्र मजबूत हो रहा है वैसे वैसे नेताओं के ऐसे बयान आम हो चले हैं जिनमें आम जनता के प्रति ति‍रस्‍कार का भाव दिखता है। महाराष्‍ट्र सरकार में उपमुख्‍यमंत्री रहे अजीत पवार ने किसानों को पानी न मिलने पर कहा था बांध में पानी नहीं है तो क्‍या पेशाब कर दें। और इसके बाद भी महाराष्‍ट्र के कद्दावर नेता बने रहे। और आज भी हैं।

मौजूदा समय में सत्‍तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेता भी इस तरह के शर्मनाक बयान देते रहे हैं। भाजपा नेताओं ने ही नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को खालिस्‍तानी और अलगाववादी कहा था। खैर मौजूदा दौर में नेताओं से गरिमापूर्ण आचरण की उम्‍मीद नहीं की जा सकती है। लेकिन मेरा सवाल आम जनता से है कि जनता जनार्दन खुद को इतना तो न गिराइये कि मतदाता होने पर शर्म आने लगे। एक राज्‍य का मुख्‍यमंत्री मौतों पर इस तरह का बयान देकर निकल लेता है और उस राज्‍य में सब कुछ सामान्‍य रहता है। या दूसरा कोई नेता सत्‍ता के मद में चूर आम जनता का तिरस्‍कार करके भी राजनीति में अपनी जगह बनाए रखता है। जब भी ऐसा होता है तो नेता के साथ जनता जनार्दन भी सवालों के घेरे में आती है। और जनता जनार्दन पर सवाल उठने भी चाहिए क्‍योंकि नेता मुख्‍यमंत्री या प्रधानमंत्री भारत में अपना राजतिलक करके नहीं बनता है। जनता उसे नेता, मुख्‍यमंत्री और प्रधानमंत्री बनाती है। तो जनता जनार्दन से गुजारिश है कि खुद को इतना नीचे न गिराइये कि लोकतंत्र में जनता जनार्दन होती है ये बात ही बेमानी हो जाए।

 

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