“एक हो जाओ रे” या “जनता को बताओ रे”

मोदी को चुनावी जंग में चुनौती देने के लिए विपक्ष अब भी एक नेता के बिना अंकगणित पर नुस्‍खे उछाल रहा है जबकि जरूरत है केमिस्‍ट्री बनाने की

0 109

महेंद्र सिंह

मोदी सरकार की अनुकंपा से राज्‍यपाल पद पर अपना कार्यकाल पूरा कर चुके सतपाल मलिक अब छुट्टा हैं। छुट्टा का यहां कोई नकरात्‍मक मतलब मत निकालिए। यहां मतलब इस बात से है कि अब उनके ऊपर कोई बंदिश नही है कि वो ये न बोलें या वो न बोलें। यानी अब वो किसी संवैधानिक पद पर नहीं है। अब वे जो चाहें बोल सकते हैं। जैसे हम और आप जो चाहे बोल सकते हैं अपनी बात कह सकते हैं। तो सतपाल मलिक ने अपने इस संवैधानिक अधिकार का इस्‍तेमाल करते हैं ऐसी बात कही है जिसे बहुत से लोग सुनना चाहते हैं।

बीपी सिंह ने किया था विपक्ष को लामबंद

सतपाल मलिक ने मोदी सरकार को 2024 में हराने का नुस्‍खा बताया है। नुस्‍खा कोई नया नहीं है। ये नुस्‍खा आजमाया हुआ है। 1989 में बीपी सरकार ने राजीव गांधी सरकार के खिलाफ पूरे विपक्ष को लामबंद कर दिया था। और आम चुनाव में उनको सफलता भी मिली थी। तो इसी नुस्‍खे को सतपाल मलिक ने नई बोतल में पुरानी शराब की तरह पेश कर‍ दिया है। नुस्‍खा ये है कि मोदी के कैंडीडेट के खिलाफ पूरे विपक्ष का एक कैंडीडेट हो। इस तरह से मोदी को मात दी जा सकती है।

अंकगणित पर खरा है नुस्‍खा

अगर 2019 के चुनावी आंकड़ों पर बात करें। वोट का प्रतिशत देखें कि बीजेपी को कितने वोट मिले और बाकी राजनीतिक दलों को कितने वोट मिले तो ये बात सही लगती है। बीजेपी को लगभग 37 प्रतिशत मत मिले थे। और बाकी वोट दूसरे राजनीतिक दलों को मिले थे। यानी 60 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने मोदी को वोट नहीं दिया था। सतपाल मलिक इसी 60 प्रतिशत वोट को एक जगह लाने की बात कर रहे हैं। तो सुनने में यह काफी कारगर नुस्‍खा लगता है। लेकिन सतपाल मलिक ये बात भूल रहे हैं कि 1989 से अब तक गंगा जमुना में बहुत पानी बह गया है।

यूपी में काम नहीं आया था एक ओ जाओ रे का नारा

अब सब एक हो जाओ रे का नुस्‍खा अकेले काम नहीं कर रहा है। कम से कम 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा बसपा और राष्‍ट्रीय लोकदल ने यही नुस्खा अपनाया था। आप कह सकते हैं कि कांग्रेस इस गठबंधन से बाहर थी लेकिन यूपी में कांग्रेस की जो हालत थी इसके हिसाब से कोई कांग्रेसी भी ये दावा नहीं करेगा कि अगर कांग्रेस इस गठबंधन में शामिल होती तो नतीजों में कोई बड़ा फर्क पैदा हो जाता।

यूपी में विपक्ष ने नारा दिया कि सब एक हो जाओ रे। दिल्‍ली की मीडिया भी नारे के असर में आ गया और बीजेपी का मर्सिया पढ़ने लगा। इस नारे से विपक्ष के वोट तो एक हुए लेकिन बीजेपी का वोट बढ गया। बीजेपी ने 50 प्रतिशत वोट का लक्ष्‍य रखा और इस लक्ष्‍य को हासिल भी किया। वहीं विपक्ष की सारी रणनीति भोथरी साबित हुई। कहा गया कि विपक्ष के साथ अंकगणित था लेकिन उसके साथ केमिस्‍ट्री नहीं थी। केमिस्‍ट्री बीजेपी या कहें मोदी के साथ थी। लोग मोदी को एक और मौका देना चाहते थे और उन्‍होंने दिया।

केमिस्‍ट्री भी बनाए विपक्ष

विपक्ष अब भी उसी अंकगणित में उलझा हुआ है। विपक्ष केमिस्‍ट्री पर काम ही नहीं करना चाहता है। तमाम चुनावों के नतीजे बताते हैं कि अब सिर्फ एक हो जाओं रे का नारा काम नहीं करता। अब जरूरत इस बात की है कि विपक्ष एक और काम करे। जनता को बताओ रे। इसका मतल‍ब है कि विपक्ष को जनता को बताना होगा कि वे सत्‍ता में आकर ऐसा क्‍या करेंगे जो मोदी नहीं कर पाए। कैसे करेंगे। उसके लिए संसाधन कैसे आएगा। अगर विपक्ष जनतो ये बताने और समझाने में कामयाब हो जाता है तो 2024 की लड़ाई बहुत आसान हो जाएगी। फिर उसको नई बोतल में पुरानी शराब का सहारा नहीं लेना पड़ेगा।

विपक्ष को एकजुट होना होगा। एक नेता चुनना होगा। एक मंच पर आना होगा। और एक नेता को मोदी के सामने मजबूती के साथ खड़ा करना होगा। मुद्दे भी एक नेता के इर्द गिई ही काम करते हैं। या तो सरकार इतनी लोकप्रिय हो जाए कि जनता का बड़ा हिस्‍सा तय कर ले कि अब इस सरकार को हराना ही है चाहे जिसे वोट पड़े फर्क नहीं पड़ता। लेकिन विपक्ष भी जानता है कि मोदी सरकार के लिए हालात अभी इतने भी बुरे नहीं हुए हैं।

क्षेत्रीय क्षत्रपों की पीएम बनने की हसरत

दिक्‍कत ये है कि यूपी में अखिलेश किसी को नेता नहीं मानते हैं, बिहार में नीतीश से बडा कौन, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी खुदा तो नहीं खुदा से कम भी नहीं वाली हैसियत में है और महाराष्‍ट्र के पितामत चार जिलों के नेता शरद पवार ही हैं। तेलंगना जैसे राज्‍य में भी केसीआर प्रधानमंत्री बनने की महत्‍वाकांक्षा छुपाते नहीं हैं। फिर देश की दूसरी सबसे बड़ी राष्‍ट्रीय पार्टी कांग्रेस के लिए सीमित जगह बचती है जहां उसे मोदी सरकार से टक्‍कर लेनी है। यहां पर वो उसे मोदी सरकार से अकेले लड़ना है। कुल मिला कर आम चुनाव में क्षेत्रीय दल बीजेपी को टक्‍कर देंगे लेकिन क्षेत्रीय नेता राष्‍ट्रीय चुनाव में कितना दमखम दिखा पाएंगे। इस पर बड़ा सवाल है क्‍योकि आम चुनाव के मुद्दे अलग होते है। आम चुनाव में राष्‍ट्रवाद, भावनाएं हावी होती हैं।

विपक्ष इन सवालों को नजरें चुरा कर विपक्षी एकता की बात करता है। जबकि विपक्ष खुद जानता है कि इन सवालों को सुलझाए बिना होने वाली विपक्षी एकता चुनावी जंग में कारगर नहीं होगी। लेकिन तमाम विपक्षी नेता, अपने अपने गढ में 2024 से पहले हारना नहीं चाहते। अपने समर्थकों के दिल में वे ये हसरत देखना चाहते हैं कि उनका नेता भी पीएम बन सकता है। किसी एक नेता के झंडे तले लामबंद होकर 2024 से पहले ही वे कैसे अपने समर्थकों की हसरसों पर पानी फरे दें। इसीलिए मोदी चुनाव शुरू होने से पहले ही आधी जंग जीत जाते हैं। बाकी आधी जंग जीतने के लिए वो पूरी मेहनत करते हैं। और बहुत से नेता इस आधी जंग में फतह हासिल करने में उनको पूरा सहयोग देते हैं। 2024 में क्‍या अलग होगा ये देखना दिलचस्‍प होगा।

राहुल गांधी की यात्रा से बड़े क्षत्रप कर रहे किनारा

विपक्षी एकता की बानगी आप इस बात में देख सकते हैं कि राहुल गांधी की भारत जोड़ाे यात्रा यूपी में जाने वाली है। यहां अखिलेश यादव मायावती और जयंत चौधरी बड़े विपक्षी नेता हैं। लेकिन निमंत्रण के बावजूद कोई राहुग के साथ मिल कर भारत जोड़ने को तैयार नहीं दिख रहा है। अखिलेश ने तो एक कदम और आगे कह दिया कि कांग्रेस और बीजेपी एक जैसे हैं। जयंत चौधरी कह रहे हैं कि वे पहले ही बहूत व्‍यवस्‍त हैं। मसला ये है कि अखिलेश यूपी में राहुल को नेता कैसे मानें। यहीं हाल मायावती और जयंत का है। अपने घर में ही किसी और को नेता मान लें तो राजनीति क्‍या करेंगे। ऐसे में विपक्षी एकता मुद्दों पर ही संभव है। यहां कोई किसी को नेता मानने को तैयार नहीं है। और यही मोदी की सबसे बड़ी ताकत है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.