महेंद्र सिंह
पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक जिले बहराइच में 10-12 साल पहले केले की खेती बडे पैमाने पर शुरू हई। जिले की आबोहवा भी केले की खेती के अनुकुल थी। ऐसे में केले की उपज भी अच्छी रही। केले की बेहतर गुणवत्ता की वजह से किसालों को 14 से 15 रुपए प्रति किलो का दाम थोक में मिला। उस समय के लिहाज से यह बेहतर दाम था। इससे उत्साहित किसानों को खेती का रकबा और बढाया। फिर बहराइच के केला किसानों पर दिल्ली स्थिति आजादपुर मंडी के केला व्यापारियों की नजर पड़ी। यहीं से केला किसानों के बुरे दिन शुरू हो गए। दिल्ली के केला व्यापारियों ने आपस में तय कर लिया कि कोई व्यापारी केला 7- 8 रुपए से अधिक प्रति किलो के दाम पर केला नहीं खरीदेगा। बहराइच में केले की खेती करने वाले किसान कीर्ति सिंह ने बताया कि केले की खेती बहराइच में अब भी हो रही है लेकिन अब किसानों को सही कीमत नहीं मिल रही है। देश की सबसे बडी आजाद पुर मंडी के एक व्यापारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि केले के अलावा पपीते जैसे दूसरे फलों में भी कार्टेलाइजेशन का खेल चलता है और कुछ व्यापारी हैं जो पूरे कारोबार को नियंत्रित करते हैं। इस मामले में साफ है कि जो मंडी किसानों की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए बनाई गई थी, वहीं मंडी अब किसानों की मुसीबत बन रही है। ऐसे में सवाल यह है कि मंडी सिस्टम किसानों की मदद करने के बजाए उनका शोषण करने वाला उपकरण क्यों बन रहा है। इसी तरह आलू और और प्याज की खेती करने वाले किसानों को भी मंडी में अपने उत्पाद की सही कीमत नहीं मिलती है। कई बार किसान मंडी में अपने उत्पाद को औने पौन दाम पर बेच कर घर आ जाता है क्योंकि उसके पास स्टोरेज की सुविधा नहीं है।
मंडी सिस्टम से किसानों को क्यों नहीं मिल रही है मदद
एग्री एक्सपर्ट विजय सरदाना का कहना है कि इसका कारण यह है कि किसानों के पास अपने उत्पाद को एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी यानी एपीएमसी की मंडियों में लाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इसके अलावा मंडियो में बिचौलियों का कब्जा है। अगर सरकार किसानों की इनकम दोगुनी करने की बात करती है तो उसे बिचौलियों को खत्म करना होगा। इसके लिए मंडियो में आधी दुकाने किसान संगठनों को आवंटित होनी चाहिए। ऐसे किसान संगठन जो रजिस्टर्ड हैं। इससे वे मंडी में अपने उत्पाद आसानी से बेच पाएंगे। इसके अलावा सरकार को तमाम सार्वजनिक स्थल जैसे बगीचे और दूसरे स्थान किसानों को आवंटित करना चाहिए जहां किसान सब्जी, फल या दूसरी चीजें बेच सकें। दूसरे कदम के तौर पर किसी भी खरीदार को यह छूट होनी चाहिए कि वह लाइसेंस के बिना किसान से सीधे खरीद कर सके। इससे मंडियों का एकाधिकार खत्म होगा। विजय सरदाना का कहना है कि अब बात करते हैं पशुओं की किसान मछली पालन के अलावा पशु पालन भी करता है। सरकार जब अनाज का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढाती है तो मछली, मुर्गा और दूसरे पशुओं की कीमतें भी बढतीं हैं। ऐसे में सरकार को इनकी कीमतें तय करने का मकैनिज्म भी बनाना चाहिए।
एपीएमसी सिस्टम की कमजोरियों को दूर करने की जरूरत
कृषि मामलों के जानकार देवेंद्र शर्मा का कहना है कि एपीएमसी सिस्टम में कमजोरियां जरूर हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे किसानों को फायदा नहीं मिल रहा है। उनका कहना है कि मौजूदा समय में देश भर में 7,600 एपीएमसी मंडियां हैं। यह काफी कम हैं। देश में एपीएमसी मंडियों की संख्या बढा कर 42,000 करने की जरूरत है। इससे देश में हर 5 किलोमीटर पर एपीएमसी मंडियों का नेटवर्क होगा। इससे किसान को अपने उत्पाद बेचने के लिए दूर नहीं जाना होगा। इसके अलावा सरकार को एपीएमसी मंडियों में सुधार करना होगा। दिक्कत यह है कि सभी एपीएमसी मंडियों के चेयरमैन सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों के होते हैं। ऐसे में सरकार इन मंडियों में सुधार नहीं करना चाहती है। देविंदर शर्मा का कहना है कि देश में सिर्फ 6 फीसदी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी का लाभ मिलता है और बाकी 96 फीसदी किसानों कम कीमत में अपनी उपज बेचनी पडती है। पंजाब और हरियाणा में एपीएमसी मंडियों का नेटवर्क मजबूत है इसलिए यहां किसानों को एमएसपी का फायदा मिलता है लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में ऐसा नहीं है।
ईनैम पर भी नहीं मिल रही किसान को सही कीमत
मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद किसानों के लिए ऑनलाइन बाजार नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट यानी ईनैम शुरू किया लेकिन यहां भी किसानों को सही कीमत नहीं मिल रही है। ईनैम में उपज की मॉडल कीमत यानी जिस कीमत पर किसान की उपज खरीदी जाती है एमएसपी से कम होती है। वहीं सरकार का दावा है कि ईनैम के जरिए किसान मोबाइल पर कीमतें चेक कर सकता है और जहां कीमतें अधिक हों वहां अपनी उपज बेच सकता है। देवेंद्र शर्मा का कहना है कि ईनैम से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक अब तक देश की 585 मंडियों को ईनैम प्लेटफॉर्म से जोड़ा गया है।
किसानों ने खारिज किए सुधार
केंद्र सरकार ने 2021 में संसद में कानून बना कर किसानों को कहीं भी फसल बेचने का अधिकार दिया था। लेकिन किसान खास कर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान इस कानून के विरोध में उतर आए। किसानों का कहना था कि सरकार मंडी सिस्टम को खत्म करने की साजिश रच रही है। उनको आशंका थी मंडी सिस्टम खत्म करने के लिए बार सरकार अनाज की सरकारी खरीद भी बंद कर देगी। ऐसे में सरकार को मजबूर होकर अपने कदम वापस खींचने पड़े। जमीनी हकीकत ये है कि देश में सरकारी खरीद आम तौर पर गेंहू और धान की होती है। तो जहां पर सरकारी खरीद का नेटवर्क या मंडियों का नेटवर्क अच्छा है वहां के किसानों को फायदा मिला है। इसमें पंजाब और हरियाणा के किसान शामिल हैं। और खास कर बड़ी जाते वाले किसान मंडी सिस्टम का फ़ायदा उठा रहे हैं। लेकिन बाकी 90 प्रतिशत किसानों के पास बेचने के लिए इतनी उपज ही नहीं होती है कि वे वाहन किराए पर लेकर 15- 20 किलोमीटर सरकारी खरीद केंद्र पर जाकर अपनी उपज बेच सकें। ऐसे में वे औने पौने दाम पर स्थानीय कारोबारियों को अपनी उपज बेचने को मजबूर हैं।