महेंद्र सिंह
यूपी में लोकतंत्र है। यूपी देश का ही एक राज्य है। ऐसे में जाहिर है यूपी में लोकतंत्र है। लेकिन सही मायने में यूपी में लोकतंत्र सांड़ों के लिए है। यूपी सांड़ों के लिए चारागाह है। आज विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अखिलेश ने खेत से लेकर सड़कों तक पर सांड़ों के आंतक पर योगी सरकार से सवाल पूछे लेकिन सरकार के पास कोई जवाब नहीं था। बस योगी जी की खिलखिलाहट थी।
इसलिए खिलखिलाए योगी जी
योगी जी की खिलखिलाहट बिना सबब नहीं थी। जब खेत से लेकर सड़क तक सा़ंडों के आतंक और लोगों की जानें जाने के बाद भी वे दोबारा मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो उनकी खिलखिलाहट बनती भी है। सवाल तो किसानों का है। जो न हंस सकते हैं और न रो सकते हैं। अगर रोते हैं तो कहा जाता है कि ये सांड़ सरकार ने नहीं किसानों ने ही छोड़े हैं। इस बात में सच्चाई भी है।
जानवर छोड़ने वालों पर सख्ती क्यों नहीं
लेकिन सवाल ये उठता है जो सरकार इस बात का कानून बना सकती है कि गाय काटी न जाए। इसे लेकर सख्ती कर सकती है। वही सरकार इस बात पर सख्ती क्यों नहीं कर सकती कि कोई अपने जानवर आवारा न छोड़े। सरकार के लिए क्या ये मुश्किल काम है। या यूपी में सरकार को अपने इकबाल पर भरोसा नहीं है। सवाल ये है कि अगर कुूछ लोग अपने जानवर खुले में छोड़ रहे हैं तो इसकी कीमत पूरी किसान बिरादरी क्यों उठाए। और सिर्फ किसान बिरादरी की ही बात नहीं है। सड़कों और खेतों में खुले घूम रहे जानवर सबके के लिए मुसीबत का सबब हैं। चाहे किसान हों या सड़क पर चल रहा राहगीर सबकी जान सांसत में है।
750 करोड़ किसके लिए
यूपी के बजट में सरकार ने आवारा पशुओं की समस्या से निपटने के लिए 750 करोड़ रु की व्यवस्था की है। इससे पहले भी सरकार इसके लिए बजट की व्यवस्था कर चुकी है। बड़े पैमाने पर गौशालाएं बनवाईं गईं हैं। लेकिन सरकार से लेकर आम जनता तक सबको पता है कि ये व्यवस्था काम नहीं कर रही है। आवारा जानवर रात में गौशाला में रहते हैं और दिन में किसानों की फसल चरते हैं। इस तरह से तो किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। उनको फ़सल का नुकसान भी हो रहा है और उन्हीें के पैसे से चलने वाली गोशालाओं का फ़ंड किसी और की जेब में जा रहा है।