महेंद्र सिंह
2014 के बाद से नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय राजनीति में खुद को लगातार मजबूत बनाती जा रही है। इस सफर में उसे कुछ झटके भी लगे हैं। कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में उसे शिकस्त मिली है। लेकिन अगर लोकसभा चुनाव की बात करें तो उसकी ताकत लगातार बढ़ी है और बढ़ ही रही है। वहीं कांग्रेस सहित विपक्षी राजनीतिक दल लगातार पराजय से निराश हैं। और ये निराशा इस हद तक बढ़ गई है कि अब वे वोटर्स पर ही तोहमत लगाने लगे हैं कि वोटर्स ही बुनियादी मुद्दों पर वोट नहीं कर रहे हैं और भावनात्मक मुद्दों पर वोट कर रहे हैं। ऐसे में वे क्या कर सकते हैं। लेकिन वोटर्स पर तोहमत लगाना इन राजनीतिक दलों के दिवालिएपन को ही दिखाता है।
बदल गया है मतदाता
2004 के बाद मतदाताओं के वोटिंग पैटर्न में बदलावा आया है। और 2014 के बाद से हम लगातार इस बदलाव को ज्यादा मुखर तरीके से देख रहे हैं। मतदाता अब राज्यों और राष्ट्रीय चुनाव में अलग तरीके से वोट करता है। राज्यों के चुनाव में बुूनियादी मुद्दे हावी रहते हैं और राष्ट्रीय चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे। इसी का नतीजा है कि वहीं मतदाता राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में कांग्रेस को जिताता है लेकिन लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जोरदार जीत दिलाता है। दिल्ली विधानसभा में केजरीवाल की झोली वोट से भर देता है और लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वोटाें से मालामाल कर देता है। ऐसे में संदेश साफ है कि विपक्ष को भी मतदाताओं के हिसाब से अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। देश के चुनाव बिजली, पानी, महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे तो रहेंगे लेकिन चुनाव इन मुद्दों नहीं जीते जाएंगे। यहां तो राष्ट्रवाद का मुद्दा चलेगा, भारत–चीन तनाव का मसला काम करेगा, राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा काम करेगा। वैश्विक दुनिया में भारत की स्थिति पर बात होगी। भारत के पासपोर्ट की हैसियत क्या है। और भारत जी 20 की अध्यक्षता करने जा रहा है उससे दुनिया में भारत के लिए क्या बदलेगा। ऐसा नहीं है कि राष्ट्रीय मसलों पर सिर्फ बीजेपी के लिए ही मौका है। विपक्ष के पास भी मौका है। वे अगर जनता को समझा ले जाते हैं कि नरेंद्र मोदी सीमा पर चीन से नहीं निपट पा रहे हैं तो उसके पास भी मौका है। सवाल ये है कि क्या विपक्ष अपनी रणनीति में बदलाव करेगा।
मतदाताओं को तोहमत लगाने से बाज आए विपक्ष
विपक्षी नेता आजकल ये कहते सुने जाते हैं कि बीजेपी ने देश में इतना हिंदू–मुस्लिम कर दिया है कि लोगों का दिमाग खराब हो गया है। वे अपने हित की बात ही नहीं समझ पा रहे हैं। वे महंगाई और बेरोजगारी पर वोट ही नहीं कर रहे हैं। ऐसे में विपक्ष के पास क्या रास्ता है। विपक्ष पिछले 75 साल की भारत की राजनीति पर गौर करना चाहिए। अगर जतना हमेशा महंगाई और बेरोजगारी पर वोट करती तो देश के पहले और सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी भी चुनाव हार जाते। क्या उस समय महंगाई और बेरोजगारी सहित दूसरी समस्याएं नहीं थीं। उम समय तो देश में अनाज की ही किल्लत थी क्या खाएं यही सबसे बड़ा सवाल था। तब भी लोग भूख पेट रह कर भी कांग्रेस को जिता रहे थे। समस्याएं तो तब भी थीं थीं लेकिन देश को कांग्रेस पर भरोसा था कि कांग्रेस आम लोगों के हित में काम कर रही है।
सामाजिक समूह को अपने साथ लाकर जीत रहे मोदी
विपक्ष को खास कर कांग्रेस को ये याद रखना होगा कि मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी ने देश के तमाम सामाजिक समूहों में अपना मजबूत आधार बनाया है जैसे आज के चार दशक पहले उसका मजबूत सामाजिक आधार हुआ करता था। आज मध्यवर्ग, अगड़ी जातियां, पिछड़ी जातियां, दलित आदिवासी समूह का बड़ा वर्ग बीजेपी के साथ है। जैसे आजादी के बाद तीन दशकों तक कांग्रेस को तमाम सामाजिक समूहों का समर्थन मिलता रहा। ऐसे में कांग्रेस सहित विपक्ष का ये नरेटिव भोथरा है कि बीजेपी सिर्फ हिंदू मुस्लिम करके चुनाव जीतती है। हिंदू मुस्लिम से कोई इनकार नहीं कर सकता लेकिन बीजेपी की जीत में निर्णायक तत्व कुछ और हैं। और 2014 के बाद से लगातार इस बात के सबूत मिल रहे हैं। इसीलिए विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार भी बीजेपी के सामने कारगर नहीं हो पा रहा है। 2019 में सपा बसपा और लोकदल ने मिल कर एक उम्मीदार उतारा लेकिन बीजेपी ने इन दलों को हरा दिया और बड़े अंतर से हराया। तो सिर्फ संयुक्त उम्मीदवार देने से काम नहीं बन रहा है। विपक्षी दलों को जनता को बताना होगा कि मोदी कहां फेल हो रहे हैं और अगर उनको सत्ता मिलेगी तो वे कैसे जनता के लिए बेहतर काम करेंगे। और ये सिर्फ वादे करने से नहीं होगा। देश के तमाम हिस्सों में कई दलों की सरकारें हैं। उनको इन राज्यों में काम करके जनता को दिखाना होगा कि हमने यहां पर ये काम किया और अगर केंद्र में मौका मिलेगा तो ऐसा ही काम करेंगे। फिर जनता विश्वास करेगी। बाकी वोटर्स पर तोहमत लगाने से विपक्ष को न तो अब तक कुछ खास हासिल हुआ है और न हासिल होने की सूरत नजर आ रही है।