महेंद्र सिंह
जिसका डर था वही होता हुआ दिख रहा है। अभी एक हफ्ते पहले लोकसभा में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी लाेकसभा में अडानी और पीएम मोदी की सांठगांठ पर दाहड़ रहे थे। अडानी को गैर कानूनी तरीके से फ़ायदा पहुंचाने का आरोप नरेंद्र मोदी सरकार ही नहीं सीधे पीएम मोदी पर लगा रहे थे। मीडिया के एक तबके ने इस मसले पर राहुल के तेवरों की तारीफ़ भी की। कुल मिला कर राहुल गांधी ने एक विपक्ष के नेता की हैसियत से संसद में उसी तरह का तेवर दिखाए जिसकी उम्मीद जनता एक विपक्ष के नेता से करती है। यहां तक तो ठीक था। फिर संसद का सत्र समाप्त हुआ। एक दो दिन इस मसले पर टीवी चैनलों पर कांग्रेस और बीजेपी के प्रवक्ता भिड़े। फिर सन्नाटा।
कांग्रेस में इतना सन्नाटा क्यों है
सवाल ये है कि कांग्रेस में अडानी के मसले पर इतना सन्नाटा क्यों हैं। इससे ज्यादा मुखर तो बुद्धिजीवियों का वो तबका है जो कांग्रेस से सहानुभूति रखता है। जो चाहता है कि मोदी सत्ता से हटें और राहुल गांधी पीएम बनें। इस तबके को लगता है कि अडानी का मामला ऐसा है जिसके जरिए मोदी की छवि को दागदार किया जा सकता है। ये तबका राहुल के तेवरों से उत्साहित था। लेकिन इस तबके में भी एक दो लोगों ने तभी शक जताया था कि अगर कांग्रेस इस मसले पर संसद में बहस के लिए राजी हो जाती है तो यह मामला हल्का पड़ जाएगा। ऐसे में विपक्ष को इस मसले पर संसद नहीं चलने देनी चाहिए। इससे सरकार दबाव में आएगी और जनता तक भी अडानी के मसले को पहुंचाने में मदद मिलेगी। हालांकि ऐसा हुआ नहीं और कांग्रेस ने इस पर चर्चा का प्रस्ताव स्वीकार किया और संसद सत्र खत्म होने के बाद ये मसला भी सन्नाटे की जद में आ गया है।
सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस का कोई वरिष्ठ नेता अडानी के मामले पर बोलना नहीं चाहता है। राजस्थान के सीएम अशोह गहलोत हों या मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ। इन नेताओं के अडानी से अच्छे रिश्ते हैं। इसके अलावा अडानी ग्रुप कांग्रेस शासित राज्यों में भी निवेश कर रहा है। ऐसे में इन नेताओं को इस मसले को तूल देना राजनीतिक तौर पर समझदारी भरा कदम नहीं लगता है।
क्या चौकीदार चोर है जैसा साबित होगा अडानी मामला
क्या अडानी मामला भी राहुल गांधी के लिए राफेल जैसा साबित होगा जब राफेल को लेकर राहुल गांधी ने नारा लगाया था चौकीदार ही चोर है। 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी ने चौकीदार चोर है नारे के जरिए पीएम मोदी को पटखनी देने का हर संभव प्रयास किया। लेकिन कांग्रेस के दूसरे वरिष्ठ नेता राहुल के इस नारे से सहमत नहीं दिखे। 2019 में कांग्रेस की शर्मनाक पराजय के बाद ये चीजें मीडिया में सामने आईं कि राहुल गांधी के बार बार कहने के बावजूद कमलनाथ जैसे नेताओं ने चौकीदार चोर है का नारा नहीं लगाया। राहुल गांधी ने भले ही लगभग 4,000 किलोमीटर की यात्रा करके भारत जोड़ने का प्रयास किया हो लेकिन कांग्रेस में उनकी सिक्का अब भी पूरी तरह से नहीं चल पा रहा है। आगे क्या होगा ये तो आगे पता चलेगा।
अडानी समूह के काम काज पर हैं गंभीर सवाल
अडानी समूह पर अवैध तरीके से निवेश लेने का आरोप है। और ये आरोप विपक्ष ने नहीं अमेरिका की एक संस्था ने लगाया है। भारत के शेयर बाजार पर इस आरोप का असर भी दिख रहा है और अडानी समूह को काफी नुक़सान उठाना पड़ा है। इसके अलावा अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट की वजह खुदरा निवेशकों को तगड़ा नुक़सान उठाना पड़ा है। अडानी समूह को गलत तरीके से फ़ायदा पहुंचाने के विपक्ष के आरोप को अगर राजनीतिक भी मान लें तो भी कॉरपोरेट की दुनिया से भी अडानी समूह की कंपनियों के काम काज पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। एक बड़े कॉरपोरेट के काम काज पर इस तरह सवाल उठना भारत के शेयर मार्केट कारोबार के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इससे शेयर बाजार की साख भी प्रभावित होती है। राहुल गांधी की मांग को किनारे कर दें तब भी जरूरत तो इस बात की है कि बाजार नियामक सेबी अडानी समूह पर उठ रहे सवालों की जांच करे और तस्वीर साफ करे। अगर ऐसा नहीं होता है तो कॉरपाेरेट के काम काज को लेकर आम निवेशकों का भरोसा कम होगा और आख्रिरकार इसका नुकसान देश को उठाना होगा।
चार दशक से काम कर रहा है कॉरपोरेट और नेताओं का नेक्सस
अब एक बार फिर से बात करते हैं राहुल गांधी की। ये बात तो जगजाहिर कि इस देश में कॉरपोरेट और नेताओं का भ्रष्ट नेक्सस काम कर रहा है। और ये आज से नहीं पिछले कम से कम चार दशकों से काम कर रहा है। जब राहुल गांधी के पिता और स्वर्गीय राजीव गांधी देश के पीएम थे तो उनके मातहत काम करने वाले पूरे वित्त मंत्रालय का लंच उस समय के सबसे बड़े उ्योगपति फाइनेंस करते थे। दावा ये भी किया जाता है कि पूरा वित्त मंत्रालय ही उस उद्योगपति के पे रोल पर था। हालांकि इसके लिए आज राहुल गांधी दोषी नहीं हो सकते हैं। हां राहुल गांधी कम से कम ये वादा तो कर सकते हैं कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो कॉरपोरेट और नेताओं के भ्रष्ट नेक्सस से लड़ेगे। कम से कम झूठा वाद तो कर ही सकते हैं। क्योंकि निराशा से तो बेहतर ही उम्मीद भले ही बाद में वो झूठी साबित हो।