फिर भी हैप्पी न्यू ईयर

आप सबको हफ़ता भर पहले कैसे मालूम हो जाता है कि आने वाला साल हैप्पी होने जा रहा है ? हम बाइस साल की उम्र तक गांव में रहे ! इस दौरान कभी नए साल को हैप्पी होकर आते नहीं देखा ! एक जनवरी को भी दुखीराम हैप्पी होने की जगह रोआंसे ही नज़र आते थे, " का बताई भईया ! गेहूं तौ ठीक है, लेकिन सरसों मा "माहू" लाग गवा"! ये कमबख्त माहू को भी यही खेत मिलता है, हर साल दुखीराम के खेत में घुस जाता था।

सुल्तान भारती
आप सबको हफ़ता भर पहले कैसे मालूम हो जाता है कि आने वाला साल हैप्पी होने जा रहा है ? हम बाइस साल की उम्र तक गांव में रहे ! इस दौरान कभी नए साल को हैप्पी होकर आते नहीं देखा ! एक जनवरी को भी दुखीराम हैप्पी होने की जगह रोआंसे ही नज़र आते थे, ” का बताई भईया ! गेहूं तौ ठीक है, लेकिन सरसों मा “माहू” लाग गवा”! ये कमबख्त माहू को भी यही खेत मिलता है, हर साल दुखीराम के खेत में घुस जाता था। बगल पांचू लाला की दूकान में माहू कभी नहीं लगा ! पांचू लाला तांगा लेकर गेहूं खरीदने गांव गांव घूमते थे, जब वो लाला से सेठ हो गए तो गांव खुद पांचू लाला के पास जाने लगा ! दुखी राम की लाइफ में नया साल कभी हैप्पी नहीं हुआ ! उसकी और पांचू सेठ के घोड़े की की कुंडली एक जैसी थी ! दोनों अपनी अपनी दुर्भाग्य को ढोने में लगे थे ! घोड़ा पांच साल में मरा और दुखीराम पचास साल में! सुविधा भोगी संत और विचारक कहते हैं कि परिश्रम करने से आदमी महान हो जाता है ! दुखीराम दिन के बारह घंटे फावड़ा चला कर भी पचास साल में महान नहीं हो पाए, पांचू सेठ विधवा आश्रम खोल कर पांच साल में महान हो गए! आदमी होने से महान होना कहीं ज़्यादा आसान है!

ज़माना कितना बदल गया, लोग संतक्लाज को भी लूट लेते हैं, जो कभी नियति के हाथों लूटे आदमी के आंसू पोछता था । फरवरी 2020 से कोरोना स्वच्छ भारत आभियान में लगा हुआ है ! तब से बुद्धिलाल जी फेसमास्क लगाकर गुटखा खाते हैं ! वो एक कवि हैं, कोरोना काल कवियों के लिए किसी पतझड़ से कम पीड़ादायक नहीं रहा ! ‘दो गज की दूरी ‘ मास्क ज़रूरी – का अर्थ अब जाकर समझ में आया ! बहादुर शाह ज़फ़र का एक शेर है,- दो गज जमीन भी न मिली कूचे यार में ‘- । दो गज का नारा “कब्र” (मौत) के लिए है ! कोरोना कहता है – मास्क ख़रीद कर पहनो नहीं तो कब्र में जाना तय है -! मौलाना साहब ये नहीं बता रहे कि कोरोना से वीरगति को प्राप्त होने पर जन्नत मिलेगी या दोजख ! कोरोना को कॉरपोरेट देवताओं ने मास्क का ब्रांड एंबेसडर बना कर अरबों डॉलर कमाए ! ज़िंदा लोग सदियों से मुर्दों का कारोबार संभालते आए हैं ! बहुत से विद्वान तो कोरोना को पूज्यनीय बनाना चाहते थे, पर इस असमंजस में आस्था दिग्भ्रमित थी कि ‘वो’ स्त्रीलिंग में आता है या पुलिंग में ! ताली,थाली और गाली में से जाने उसे क्या सूट करता है !!

सही बोलूं तो कोरोना जैसी महान उपलब्धि के सामने ‘मंदिर मस्जिद’ का राग भी छोटा पड़ गया था ! इससे दुखी होकर कुछ महापुरुषों ने कोरोना का पीछा किया और ‘ जमातीयों’ में उनका डीएनए ढूंढ लिया ! आंख और मुंह से गांधी जी का बंदर बन चुकी देश की मीडिया को भी मरकज और जमाती साक्षात कोरोना बम नज़र आने लगे थे !

जमातियों की शक्ल में कुछ लोगों को कोरोना के फूफा नजर आने लगे थे। कोरोना ला इलाज़ था, लेकिन फूफा जी का इलाज था ! पुलिस जमातियो को पकड़ पकड़ कर थाने ले जाने लगी! फिर पुलिस वालों ने गुहार लगाई कि फूफा जी बिरयानी मांग रहे हैं ! बिरयानी खिलाई गई तो पुलिस वालों ने बयान दिया कि फूफा जी थाली में थूक रहे हैं ! (गमीमत थी कि वो थाली में छेद करते नहीं पाए गए! ) सभ्य पुलिस वाले अतिथि देवो भव – का पालन करते हुए बिरयानी खिला रहे थे, और जनता घरों में कैद आर्तनाद कर रही थी, – अब तो जीडीपी भी कोमा में चली गई, कोरोना तुम कब जाओगे -!
पिछले तीन साल भुगत चुका हूं, अब मैं किसी को नए साल के लिए – हैप्पी न्यू ईयर – का अभिशाप नहीं देने वाला ! साल 2021 में मुझे लोगों ने हैप्पी न्यू ईयर की बद्दुआ दी थी, 14 अप्रैल को कोरोना ने मुझे धर दबोचा , उस दिन पहला रोजा था ! खैर, ऑक्सीजन लेवल 80 और 83 के बीच पींग मारता रहा मगर मैं शायद अस्पताल न जाने की वजह से जिंदा बच गया ! या फिर इसलिए, क्योंकि कोरोना को जब पता चला कि मैं हिंदी का लेखक हूं तो वो खुद मुझे छोड़ कर चलता बना ! सोचा होगा, – हिंदी के लेखक को मरने के लिए कोरोना की क्या जरूरत,,,! जाते हुए ज़रूर पाश्चाताप किया होगा, -‘ हम से भूल हो गई, हम का माफी दई दो , गलत घर में दाखिल हो गया यजमान ‘- !!

समझ में नहीं आया कि नए साल के आने में मुबारक जैसी क्या चीज है ! हमारे देश में तो मुसीबतों का आना जाना लगा ही रहता है, इसमें हैप्पी होने की क्या बात ! कभी बर्ड फ्लू तो कभी स्वाइन फ्लू ! अब तो हम आपदा को अवसर बनाने में विश्वगुरु होने के करीब हैं ! हमीं हैं जो बर्ड फ्लू से ग्रसित मुर्गे को खाकर प्रोटीन प्राप्त करते हैं ! गनीमत है कि कोरोना कभी सशरीर सामने नहीं आया , वरना झुरहू चच्चा महुआ की दारू के साथ “चखना” के तौर पर नया प्रयोग कर डालते !
राहुल गांधी जैसे ही राजस्थान से दिल्ली की ओर चले, वैसे ही मीडिया ने चीन से भारत की ओर पदयात्रा करते कोरोना को देख लिया ! वो भी भारत जोड़ो के समर्थन में चल पड़ा है! मानसून परख कर दूरदर्शी दुकानदारों ने फेसमास्क से लेकर अर्थी का सामान तक स्टॉक करना शुरू कर दिया है ! पांचू सेठ पंडित भगौतीदीन से कन्फर्म करने के लिए पूछ रहे हैं, – पंडित जी, आपका जंत्री क्या कहता है, अफवाह है या सचमुच कोरोन चल पड़ा है?’ पंडित जी जानते थे कि सेठ को कौन सी चिंता खाए जा रही है ! उन्होंने फ़ौरन गंभीरता ओढ़ ली,- ‘दुखद सूचना है यजमान ! कोरोना की कुंडली से शनि की साढ़े साती दूर हो चुकी है! मंगल खुद लालटेन हाथ में लेकर कोरोना को इधर आने का रास्ता दिखा रहा है ! देख लेना, इस बार गेहूं में बाली की जगह कोरोना ही नज़र आएगा ! नया साल मुबारक हो यजमान “!!

इस “दुखद” भविष्यवाणी पर खुश होकर पांचू सेठ ने पहली बार पंडित जी को 21 की जगह 51 रुपए की दक्षिणा दी थी !

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