नई दिल्ली : पंछी नदियां पवन के झोंके, कोई सरहद ना इन्हें रोके। बॉलीवुड का यह गीत बहुत बड़ा संदेश देता है। हमें एक देश से दूसरे देश जाने के लिए वीजा लेना पड़ता है लेकिन परिंदे अपनी मर्जी के मालिक हैं। ये उत्तर में साइबेरिया में रहते हों या संगमनगरी प्रयागराज में, ये मौसम के हिसाब से आते जाते रहते हैं। जी हां, हर साल ऐसे सैकड़ों पक्षी हजारों किमी का सफर तय करके भारत पहुंचते हैं। 8 अक्टूबर 2022 को World Migratory Bird Day मनाया गया है, ऐसे में चर्चा इन्हीं परिदों की करेंगे जिन्हें हमारे कारण जान भी गंवानी पड़ जाती है। दरअसल, इनके भारत आने का एक समय होता है। ज्यादातर पक्षी एक जगह नहीं रुकते। मौसम में बदलाव के साथ इनका ठिकाना बदलता है। ये परदेसी परिंदे प्रजनन और बच्चों के पालन-पोषण के लिए सर्वोत्तम परिस्थितियों की तलाश में हजारों किमी उड़कर चले आते हैं।
ज्यादातर पक्षियों के बारे में कहा जाता है कि वे उत्तर से दक्षिणी मैदानों की ओर पलायन करते हैं। सर्दी का मौसम शुरू होते ही ये मैदानों की ओर प्रजनन और तटीय जलवायु का आनंद लेने के लिए मैदानों की ओर उड़ चलते हैं। सर्दी में मैदानी क्षेत्र में रहने वाले कुछ पक्षी गर्मियां आते ही पहाड़ों की ओर चले जाते हैं।
प्रदूषण और अवैध शिकार के निशाने पर हैं ये परिदें
संगमनगरी प्रयागराज हो या उत्तर भारत के कई वेटलैंड्स में आपने इन खूबसूरत परिंदों को देखा होगा। प्रदूषण के अलावा अवैध शिकार के चलते ये मारे जा रहे हैं। वेटलैंड प्रवासी पक्षियों की गर्म प्रजनन स्थली मानी जाती है। लेकिन निर्माण और विकास कार्यों के चलते धरती का यह कोना भी सिकुड़ता जा रहा है। ऐसे में प्रवासी पक्षियों की आबादी प्रभावित हो रही है।
यह जानना भी दिलचस्प है कि हर साल दुनियाभर से कौन से प्रवासी पक्षी भारत पहुंचते हैं। इस लिस्ट में साइबेरियन क्रेन का नाम सबसे ऊपर आता है। ये तेजी से खत्म हो रहे हैं। दूसरे नंबर पर ग्रेटर फ्लेमिंगो है। यह दुनिया का एकमात्र लंबे गुलाबी पैरों वाला पक्षी माना जाता है। मिस क्रेन कही जाने वाली यह प्रजाति सर्दियां बिताने भारत आती हैं और ज्यादातर रेगिस्तानी इलाके में पाई जाती हैं। ब्लू टेल्ड बी ईटर, रूडी शेल्डक, यूरेशियन गौरेया ऐसे कई खूबसूरत पक्षी हमारे देश आते हैं।
एक बड़ा खतरा ‘प्रकाश प्रदूषण’ भी है
हो सकता है आपको यह शब्द कुछ अलग सा लगे। प्रकाश से कैसा प्रदूषण होता होगा? दरअसल, इन परिंदों का अपना स्वभाव होता है। ये हजारों किमी दूर आ जाते हैं लेकिन लौटने का रास्ता इनको याद रहता है। लेकिन ऊंची-ऊंची इमारतों और शहरों की जगमगाती रोशनी इनके रास्ते में अड़चन पैदा करती है। संयुक्त राष्ट्र भी इन प्रवासी पक्षियों के लिए प्रकाश प्रदूषण की गंभीरता पर दुनिया का ध्यान आकर्षित कर चुका है।
14 मई को भी विश्व प्रवासी पक्षी दिवस मनाया गया था तो संयुक्त राष्ट्र ने थीम रखा था- पक्षियों की खातिर, रात में प्रकाश धीमा करें। दरअसल, प्राकृतिक अंधकार का भी उतना ही महत्व है जितना स्वच्छ जल, वायु और मिट्टी का। कृत्रिम प्रकाश की वजह से हर साल बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों की मौत हो जाती है। वास्तव में, प्रवासी पक्षी रात में रोशनी की ओर आकर्षित होते हैं, खासतौर से तब जब वे बादलों से नीचे उड़ रहे होते हैं और कोहरा या बारिश का सामना होता है।
रोशनी में भटक जाते हैं ये पक्षी
ये पक्षी भटक जाते हैं और नतीजा यह होता है कि ये जगमगाते शहरों में ही चक्कर लगाते रह जाते हैं। ये इमारतों से टकरा जाते हैं। इनकी ऊर्जा कम हो जाती है, थकावट आती है और जान पर भी बन आती है। यही नहीं, कृत्रिम प्रकाश की तरफ आकर्षित होने के दौरान ये चूहे और बिल्लियों का भी शिकार हो जाते हैं।
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