⇒ महेंद्र सिंह
नई दिल्ली। दिल्ली एमसीडी चुनावों के अंतिम नतीजे चुके हैं। 134 सीटों पर जीत के साथ ही आम आदमी पार्टी ने दिल्ली एमसीडी फतह कर ली है। इसके साथ ही ये भी साबित हो गया है कि वोटर्स की नब्ज पर अरविंद केजरीवाल की पकड़ बरकरार है। खास के दिल्ली के वोटर्स पर। बीजेपी को दिल्ली एमसीडी में कांग्रेस की शीला दीक्षित पस्त न कर सकीं उसी दिल्ली एमसीडी में बीजेपी हांफ रही है।म बीजेपी 104 सीटें ही जीत पाई। हालांकि बीजेपी सांसद मनोज तिवारी पहले ही स्वीकार कर चुके थे कि लोग हमारे खिलाफ थे लेकिन हमने काफी कुछ कवर किया है। जाहिर है कि अगर लोग खिलाफ थे जीत हासिल करना संभव नहीं था। इस बदलाव में सारा फर्क केजरीवाल और उनकी टीम है। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी रेस में आगे निकल चुकी है।
अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी को खुद को साबित करने के लिए न सिर्फ बीजेपी से लड़ना पड़ रहा है बल्कि कांग्रेसी इकोसिस्टम और लेफ्ट लिबरल बिरादरी भी उनका मर्सिया पढ़ने का कोई मौका नहीं छोड़ती हैं। तो अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली एमसीडी में दोहरी चुनौती को भोथरा किया है।
दूर तक जाएगा दिल्ली एमसीडी का संदेश
दिल्ली एमसीडी के चुनाव नतीजों का संदेश दूर तक जाएगा। और अगर गुजरात विधानसभा के चुनाव नतीजों में आम आदमी पार्टी ने जरा भी दमखम दिखाया। तो ये बात काफी हद तक साफ हो जाएगी कि आने वाले समय में मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी के प्रभुत्व को अगर कोई गंभीर चुनौती पेश करेगा तो ये चुनौती अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम की ओर से आएगी।
एजेंसियों के सामने बेरपरवाह दिखे केजरीवाल
पीएम नरेंद्र मोदी की नाक के नीचे दिल्ली विधानसभा में दो बार प्रचंड बहुत से सरकार बनाना। फिर पंजाब में कांग्रेस को मटियामेट कर देना और गुजरात में घुस कर भगवा बिग्रेड को ललकार देना। राजनीतिक तौर पर ये सब आसान नहीं रहा है। जिस ईडी और सीबीआई के छापों के डर से बड़े बड़े विपक्षी नेता सरेंडर करते दिखते हैं केजरीवाल उन एजेंसियों की आक्रामकता के सामने बेपरवाह दिखते हैं। 2015 में दिल्ली विधानसभा में प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने के बाद से केजरीवाल को झटके भी लगे हैं। लेकिन उनकी सफलता का प्रतिशत भी कम नहीं कहा जा सकता है।
मुश्किल है आप के उभार को थामना
किसी भी नजरिए से देखने पर पता चलता है कि अरविंद केजरीवाल अभी राजनीतिक तौर पर हैवीवेट भले ही न बन पाएं हो लेकिन मोमेंटम उनके साथ है। आबकारी नीति में अनियमितता के मामले को बीजेपी ने बड़ा मुद्दा बनाया। आबकारी मंत्री मनीष सिसौदिया से एजेंसियों ने पूछताछ की लेकिन सिसौदिया की गिरफ्तारी नहीं हो सकी। ये गिरफ्तारी न होना एक बड़ा संदेश है। संदेश साफ है कि मोदी सरकार भी अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया को हल्के में नहीं ले रही है। उनको पता है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस नहीं है जो लगातार रसातल में जा रही है। आम आदमी पार्टी उभार पर है और इस उभार को थामने में मोदी और अमित शाह भी पसीना पसीना हो रहे हैं।
आम आदमी पार्टी में दिख रही है उम्मीद
ऐसे समय में जब कांग्रेस क्षेत्रीय दल बनने की ओर है और दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों के नेता अपने अपने कर्मो की वजह से मोदी सरकार के सामने समझौतावादी रूख दिखा रहे हैं आम लोगों को आम आदमी पार्टी में उम्मीद दिख रही है। आम आदमी पार्टी आम लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों पर फोकस कर रही और इससे जुडे़ मुद्दों को उठा रही है। और सबसे बड़ी बात आम आदमी पार्टी सेक्युलर और सांप्रदायिक एजेंडे की लड़ाई में भी नहीं फंस रही है जो बीजेपी का सबसे बड़ा हथियार है।
केजरीवाल के सामने चुनौतियां
दिल्ली एमसीडी की जीत अपने साथ आम आदमी पार्टी के लिए चुनौतियां भी लाई है। नगर निगम में अनु्बंध पर काम कर रहे हजारों कर्मचारियों का मुद्दा, गेस्ट टीचर्स का मुद्दा और कूड़े के पहाड़ का मामला ये सब ऐसी चुनौतियां हैं जिनसे आम आदमी पार्टी के मेयर को पार पाना होगा। और केजरीवाल की इस इमेज को बनाए रखना होगा कि वे आम जनता के मसलों पर डिलिवर कर सकते हैं।
आमदनी अठन्नी खर्चा रुपै्य्या
दिल्ली एमसीडी की सालाना आमदनी लगभग 4800 करोड़ रु है। लेकिन इसके खर्च बेशुमार हैं। दिल्ली एमसीडी का इस साल का अब तक खर्च ही 8893 करोड़ रु रहा है। ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती संसाधनों का इंतजाम करने की होगी। और अब दिल्ली एमसीडी में आम आदमी पार्टी की सरकार होगी ऐस में मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार कितना सहयोग करेगी ये समय ही बताएगा।