पीपुल्स स्टेक डेस्क
नई दिल्ली: देश के लिए आज का दिन बहुत ही अहम हैं. आज ही के दिन भारतीय लोकतंत्र को पहली महिला प्रधानमंत्री मिली थी. भारतीय इतिहास बिना इंदिरा गांधी के जिक्र के अधूरा रहता है. इंदिरा गांधी का राजनीतिक जीवन दो हिस्सों में बंटा हुआ हैं. एक हिस्सा ऐसा है, जिसका लोहा उनके बड़े से बड़े आलोचक भी मानते हैं. कुछ मामलों में इंदिरा गांधी की उपलब्धियां इतनी बड़ी हैं कि देश का कोई भी प्रधानमंत्री उनकी बराबरी नहीं कर सकता. लेकिन उनके राजनीतिक जीवन का दूसरा पक्ष इससे एकदम अलग है.
इंदिरा गाँधी अचानक एक ऐसी निर्दयी राजनेता के रूप में बदली, जिसने सत्ता की मोह में सारी हदें पार कर दी और अहिंसक क्रांति से आजादी हासिल करने वाले भारत जैसे देश को तानाशाही वाले निजाम में बदल दिया. लेकिन इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ हासिल किया, वो अपने दम पर और लड़कर किया. नेहरू जी की मृत्यु के बाद कांग्रेस अध्यक्ष कामराज की पहल पर इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री का ताज मिला और यहीं से शुरू हुआ भारतीय राजनीति का एक नया युग. 19 जनवरी 1966 को गुप्त मतदान के जरिए इंदिरा जी पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए चुन ली गईं. उन्हें 355 और मोरार जी को 169 वोट मिले थे.
प्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा गाँधी के लिए शुरुआती दिन काफी मुश्किल भरे थे. लेकिन इंदिरा की परवरिश ही राजनीतिक माहौल में हुई थी, तो उन्हें सत्ता के दांव-पेंच सीखने में ज्यादा समय नहीं लगा. लोकसभा में डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने उन्हें गूंगी गुड़िया के नाम से नवाजा था. 1969 में इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई को वित्त मंत्री के पद से हटा दिया और देश के 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया. सर्वसम्मति से इंदिरा गांधी वर्ष 1966 से 1977 ,1980 से 1984 अपने अंतिम दिनों तक तीन बार भारत की प्रधानमंत्री रहीं। आखिर में इंदिरा गाँधी ने दो सिख अंगरक्षकों की गोलियों से अपनी शहादत देकर वतन के फर्ज की सबसे बड़ी कीमत चुकाई.