अडानी का धंधा तो सालों से राकेट बना हुआ था, हिंडनबर्ग का इंतजार क्यों कर रहे थे राहुल गांधी
देर से ही राहुल गांधी ने संसद में पहली बार तथ्यों के साथ सत्ता और कॉरपोरेट की मिलीभगत को देश के सामने रखने की हिम्मत दिखाई है
महेंद्र सिंह
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा में बोलते हुए पीएम मोदी पर जम कर हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि पीएम मोदी अडानी को गैर कानूनी तरीके से फायदा पहुंचा रहे है। यही वजह है कि 2014 में मोदी के पीएम बनने के बाद अडानी का धंधा राकेट की रफ्तार से ऊपर गया है। लगभग 40 मिनट के भाषण में राहुल गांधी ने कई तथ्य रखे जिनके सहारे उन्होंने अडानी ग्रुप और सरकार के बीच सांठगांठ की बात कही।
भारत जोड़ो यात्रा के बाद पहली बार लोकसभा में बोल रहे राहुल गांधी आत्मविश्वास से भरे नजर आए। उन्होंने काफी सरल और आम जनता को समझ में आने वाली भाषा में अपनी बात रखी, हालांकि उनकी बातों में तथ्य कितना था और राजनीतिक आरोप कितना था इस पर बहस की जा सकती है लेकिन राहुल गांधी इस बार अडानी के म200। और हिडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद उनके पास अडानी को लेकर काफी मसाला भी था।
पिछले 9 साल से सरकार के खास बने हुए अडानी
राहुल विपक्ष के नेता हैं और विपक्ष के नेता के तौर पर उनको ये सवाल उठाने का हक है कि देश में एक ही उ्योगपति को हर सेक्टर में तरजीह क्यों दी जा रही है। लेकिन इसके साथ ही ये सवाल भी उठता है कि ये तो पिछले 9 साल से दिख रहा था कि मोदी सरकार में अडानी का दौलत और कारोबार क्रूज मिसाइल की रफ्तार को भी मात दे रहा है। इससे पहले काफी समय से राहुल गांधी मोदी सरकार पर दो उद्योगपतियों अंबानी और अडानी के लिए काम करने का आरोप लगा रहे थे। लेकिन संसद में सिलसिलेवार तरीके से अंबानी को लेकर लगाए गए उनके आरोप काफी तथ्यों से भरपूर हैं। हालांकि संसद में किसी पर बिना कानूनी सबूत के आरोप लगाने की परंपरा नहीं रही है। फिर भी लोकसभा अध्यक्ष ने राहुूल गांधी को अपनी बात रखने का मौका दिया ये देश के लोकतंत्र के लिए अच्छी बात है।
टिके रहे राहुल तो सरकार की बढ़ेगी दिक्कतें
राहुल गांधी ने देश के एक बड़े उद्योगपति पर जिस तरह के आरोप लगाए हैं निश्चित तौर पर ये एक राजनेता के तौर पर हिम्मत का काम है। लेकिन राहुल गांधी से अब उम्मीद की जाएगी वे अपने आरोंपों को सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित न रहने दें। उनको इस मसले को संसद से सड़क तक उठाना चाहिए और जरूरत पड़े तो कोर्ट तक जाना चाहिए। अगर वे इस मसले पर निरंतरता बनाए रखते हैं तो जनता की नजर में राहुल गांधी की विश्वसनीयता बढ़ सकती है। माना जा रहा था कि कांग्रेस पार्टी को उद्योगपतियों से चंदे की दरकार होती है ऐसे में राहुल गांधी शायद अडानी को लेकर आक्रामक रूख न अपनाएं। लेकिन राहुल गांधी ने ऐसा सोचने वालों को गलत साबित किया है।
सत्ता और कॉरपोरेट की मिलीभागत पर राहुल ने दिखाई हिम्मत
हालांकि कांग्रेस के शासनकाल में तमाम उद्योगपतियों को किस तरह से फायदा पहुंचाया गया और यूपीए 2 सरकार कॉरपोरेट और राजनीतिक नेतृत्व के बीच सांठगांठ को लेकर किस तरह से बदनाम हुई। इसको अभी लोग भूले नहीं हैं। इसके बावजूद विपक्ष के नेता के तौर पर राहुल गांधी ने मौजूदा सत्ता तंत्र और कॉरपोरेट की मिली भगत को काफी हद तक उजागर किया है। ये बात सही है कि किसी पर बिना सबूत के आरोप नहीं लगाए जाने चाहिए। लेकिन हकीकत की दुनिया में हम जानते हैं कि माौजूदा व्यवस्था में हर आरोप को सबूत जुटा कर साबित भी नहीं किया जा सकता है।
पीएम मोदी की साख डैमेज करने पर फोकस
मौजूदा समय में राजनीति परसेप्शन यानी धारणा का खेल है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ईमानदारी पर विपक्ष के किसी नेता ने भी सीधे सवाल नही उठाए। लेकिन आम जनता में परसेप्शन बन गया कि मनमोहन सिंह की सरकार बहुत भ्रष्ट सरकार थी। कांग्रेस सत्ता से हटने के 9 साल बाद भी आज तक इसकी कीमत चुका रही है। ऐसे में कांग्रेस और राहुल गांधी की रणनीति भी पीएम नरेंद्र मोदी की छवि पर सवाल खड़े करना और उसे दागदार बनाना है। ये तो आम लोगों को भी दिख रहा है कि पिछले नौ सालों में अडानी को कौन सा जादुई चिराग मिल गया है कि उनका कारोबार हर सेक्टर में फैल रहा है। खास कर ऐसे समय में जब आम आदमी के लिए अपना परिवार चलाना एक मुश्किल काम है। तो जंग अब राहुल गांधी और मोदी की इमेज के बीच है। ये वक्त बनाएगा कि राहुल गांधी मोदी की इमेज को कितना दागदार बना पाते हैं। 2024 में कांग्रेस की चुनावी संभावनाएं इस जंग के नतीजे पर निर्भर करेंगी।