लोकतंत्र की गरिमा बहाल करने की ओर…

सत्ता जब निरंकुश होकर संसद को बांझ बना दे और अन्य संस्थाओं को विफल करने लगे। न्यायपालिका पर भी नाकाम होने का खतरा मंडराने लगे तो ऐसे में जनता के पास जाइए और जनार्दन को जगाइए।

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मनोज सिंह

नई दिल्लीः लोकतंत्र में सत्ता जब निरंकुश होकर संसद को बांझ बना दे और अन्य संस्थाओं को विफल करने लगे। न्यायपालिका पर भी नाकाम होने का खतरा मंडराने लगे तो ऐसे में लोकतंत्रवादियों के सामने सिर्फ एक रास्ता रह जाता है। जनता के पास जाइए और जनार्दन को जगाइए। जनता जनार्दन से ऊर्जा लीजिए और सत्य, सद्भाव तथा समता की शक्ति से निरंकुशता की धज्जियां बिखेर दीजिए। साम्प्रदायिकता की सीढ़ियां चढ़ते हुए घृणा और हिंसा को हथियार बनाकर 2014 में कारपोरेटियों की सरकार जब सत्ता में आई तो निरंकुशता का नंगा नाच शुरू हो गया। हिन्दुत्व का मुखोटा ओढ़े इन गुजराती कारपोरेटियों ने अपने नापाक मंसूबों को परवान चढ़ाने के लिए सबसे पहले लोकतंत्र के चौथे पाये पर कब्जा किया। एक बार यह हो गया तो आगे का उनका काम बहुत आसान हो गया। जनता हिन्दुत्व के नाम पर मूर्ख बना दी गई। देश के एक बड़े तबके को दरकिनार कर उनके खिलाफ नफरत फैलाया जाने लगा।

जिन किसानों, मजदूरों, वंचितों का कल्याण ही लोकतंत्र का परम लक्ष्य है वे सरकारी धोखाधड़ी के जरिये लूटे जाने लगे। इसके साथ ही राज्य की सार्वजनिक सम्पत्ति की बेशर्म लूट शुरू हुई। सब कुछ कारपोरेट घरानों को दे दिया जाने लगा। कोरोना काल का ऐसा अमानवीय इस्तेमाल इन घटिया कारपोरेटियों ने किया जिसके लिए इतिहास इनको कभी माफ नहीं करेगा। वह दौर था जब लोग चारो ओर मर रहे थे और बेइमान सरकार जान बचाने की बजाय किसानों की जमीन लूटकर पूंजीपतियों को देने का षड़यंत्र रचने में लगी रही। वह पहला मौका था जब देश का अन्नदाता खड़ा हुआ और निरंकुश सरकार को उसकी औकात बता दिया गया।

लेकिन, निरंकुश सत्ता किसानों के आगे मुंह की खाकर भी नहीं सुधरी। सार्वजनिक सम्पत्ति और जनधन की लूट के साथ साम्प्रदायिक वैमनस्य बढ़ता ही गया। तब कांग्रेस ने बेबसी तोड़ने के लिए आगे बढ़ने का फैसला लिया। राहुल गांधी ने सच्चे लोकतंत्रवादी की तरह पदयात्रा का रास्ता चुना। कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत को जगाने निकल पड़े। शुरू में लोगों ने शंकाएं जताई लेकिन दिन ब दिन वे निर्मूल होती गईं। भारत जोड़ो यात्रा जारी है। अब कोई शंका नहीं कि यह यह यात्रा भारतीय लोकतंत्र की गरिमा बहाल करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगी।

( ये लेखक के अपने विचार हैं, peoplesstake.in का इससे सहमत होना ज़रूरी नही है )

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