कमजोर सांसदों पर दांव नहीं लगाएगी भाजपा, जुटाई जा रही है हर सीट की जानकारी

पिछले लोकसभा चुनाव में हारी हुई सीटों के साथ कमजोर सीटों के लिए हो रही है विशेष तैयारी

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पीपुल्‍स स्‍टेक ब्‍यूरो

भाजपा नेतृत्व बीते लोकसभा चुनाव में हारी हुई और कमजोर लोकसभा सीटों के लिए विशेष तैयारी करने के साथ अपने मौजूदा सांसदों की सीटों की स्थिति का भी आकलन करने जा रही है। इस बारे में आने वाली रिपोर्ट के आधार पर सभी सांसदों को भी उनके क्षेत्र के बारे में बताया जाएगा। संसद के बजट सत्र के बाद इस बारे में भावी रणनीति तैयार की जाएगी, जिसमें सांसदों को समय देने के साथ भावी विकल्प भी तैयार किए जाएंगे।भाजपा ने अभी मिशन 2024 के लिए कोई लक्ष्य तय नहीं किया है, लेकिन पार्टी का कहना है कि अगले चुनाव में वह मौजूदा 303 के आंकड़े से काफी आगे जाएगी। इसके लिए उसने साल भर पहले से ही तैयारी शुरू कर दी थी, जबकि पार्टी ने हारी हुई व कमजोर लगभग 160 सीटों पर अपने तमाम नेताओं को भेज कर वहां पर पार्टी को मजबूत करने का जिम्मा सौंपा था। यह कवायद अभी भी जारी है।

सीटें रिपीट करने पर फ़ोकस
साथ ही पार्टी ने अपनी मौजूदा सीटों को फिर से हासिल करने की भी तैयारी शुरू कर दी है। इसके तहत सभी सांसदों के क्षेत्रों की विभिन्न स्तरों पर जानकारी जुटाई जा रही है। सूत्रों के अनुसार संसद के बजट सत्र के बाद पार्टी अपने सांसदों को उनके क्षेत्र की अद्यतन जानकारी से भी अवगत करा देगी। जो सांसद कमजोर होंगे, उनको अपने क्षेत्र को मजबूत करने लिए छह महीने का समय भी दिया जा सकता है। संकेत हैं कि रणनीतिक बदलावों के अलावा पार्टी टिकट तभी काटेगी, जबकि मौजूदा सांसद को लेकर एंटी इनकंबेसी ज्यादा हो।

लोकसभा उम्‍मीदवार चुनने की कवायद
सूत्रों के अनुसार, इस साल के आखिर में पार्टी क्षेत्रवार लोकसभा उम्मीदवारों की कवायद शुरू कर देगी। तब तक लोकसभा चुनाव के पहले तक के सभी विधानसभा चुनाव भी हो चुके होंगे और हर राज्य की एक अद्यतन स्थिति सामने होगी। गौरतलब है कि पार्टी ने गुजरात में दो बड़े प्रयोग किए थे। पहले तो विधानसभा चुनाव से साल भर पहले की पूरी सरकार बदल दी थी और बाद में टिकट बंटने पर 41 फीसद चेहरे भी बदले गए। इसका परिणाम यह रहा कि पार्टी को सबसे बड़ी जीत हासिल हुई।

वैसे भी आम तौर पर 25 से 30 फीसद टिकट काटे ही जाते हैं। छोटे राज्यों में यह आंकड़ा कम हो सकता है। टिकट काटना व देना इस बात पर भी काफी निर्भर करता है कि चुनाव के समय पार्टी का अपना गठबंधन कैसा है और चुनौती दे रहे विपक्ष का गठबंधन है या नहीं। अगर है भी तो राज्यवार वह कितना प्रभाव डाल सकता है।

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