We the people यानी जनता मालिक है, नेता,कलेक्‍टर नहीं

अगर लोकतंत्र की व्‍यवस्‍था आम जनता को अधिकार और ताकत नहीं दे पा रही है तो ये जनता के किस काम की है

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महेंद्र सिंह

75 साल हो गए। हम एक मजबूत लोकतंत्र हैं। लेकिन सिवाय पांच साल में एक बार वोट देने के अलावा देश की बड़ी आबादी को ये अहसास तक नहीं है कि वी द पीपुल यानी जनता मालिक है। न कि नेता या कलेक्‍टर। लोकतंत्र का असली मकसद जनता को ताकत देना है। संविधान में भी यही लिखा है। संविधान जिसकी दुहाई राजनीतिक दल और नेता देते कभी नहीं थकते। ऐसे लोकतंत्र में उत्‍तर प्रदेश में सरकारी जमीन पर बनी झोपड़ी हटाने में दो निर्दोष मां, बेटी की जान चली जाती है। और सरकारी अमला अपनी खाल बचाने में जुट जाता है। किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ता है। बिजनेस ऐज युजुअल।

सरकार तब जागती है जब मामले को जातीय रंग दिया जाता है। सरकार को लगता है कि जातीय रंग का मामला अगर जोर पकड़ेगा तो उसके वोट के गणित पर फर्क पड़ेगा। इसके बाद लेखपाल जैसे छोटे कारिंदे को गिरफ्तार किया गया और बड़े अधिकारी को निलंबित किया गया। ये पहली घटना नहीं। ऐसी घटनाएं लगातार हो रही हैं जो ये बताती है कि इस चमकते लोकतंत्र में एक आम आदमी की कोई हैसियत नहीं है। उसके जानमाल की कोई कीमत नहीं है।

अभी ज्‍यादा समय नहीं हुआ जब यूपी में ही एक व्‍यापारी को पुलिस ने हिरासत में पीटपीट कर मार डाला। सामाजिक आर्थिक हैसियत के हिसाब से मृतक गरीब भी नहीं कहा जा सकता है। कुछ दिन मीडिया में शोर होने के बाद इसे भुला दिया गया। पीडि़त परिवार को कुछ रक़म दे दी गई।

अब सवाल नेताओं और अफसरों पर उठाने का समय नहीं रहा। नेताओं और अफसरों के पास तो पावर है। 

वे इसका बेजा इस्‍तेमाल कर रहे हैं। और नेताओं और अफसरों से ये उम्‍मीद करना कि वे अपनी पावर का इस्‍तेमाल आम जनता के हित में करेंगे कल्‍पना से परे है। ऐसे में रास्‍ता एक ही बचता है। कम से आम जनता को हर पांच साल पर वोट का अपना कर्तव्‍य निभाने के अलावा ये तो सोचना चाहिए कि इस व्‍यवस्‍था में उसकी हैसियत क्‍या है।

ऐसा क्‍यों होता है कि हर जलजला उसे ही भुगतना पड़ता है। आम जनता के पास वोट की ताकत है लेकिन उसे ताकत का कैसे इस्‍तेमाल कैसे करना है समझना होगा। आप जिसे ताकत देकर सत्‍ता सौंपते हैं वही आपकाे भेड़ की तरह हांकने लगता है। आप ही उसे ताकतवर बनाते हैं वही आपको कमजाेर और लाचार बनाता है।

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