पीएम मोदी पर कितना और कब तक भरोसा करेगी जनता
मीडिया के चुने हुए लोगों और अपने समय पर अपने सवालों के साथ बात करते हैं मोदी
महेंद्र सिंह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए विपक्ष को निशाने पर लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष देश की तरक्की से निराश है और उसे आत्मनिरीक्षण की जरूरत है। पीएम मोदी ने 140 करोड़ देशवासियों को अपना रक्षा कवच बताया और कहा कि विपक्ष के आरोपों को जनता स्वीकार नहीं करेगी। हालांकि एक घंटे से भी अधिक समय के अपने भाषण में राहुल गांधी के आरोपों को कोई जवाब नहीं दिया। हालांकि इस बात की पहले से उम्मीद की जा रही थी कि वे अडानी को लेकर लगाए गए आरोपों पर कोई सफाई देकर राहुल गांधी को एक बार फिर से चर्चा में लाने की वजह नहीं बनेंगे। इससे एक दिन पहले भाजपा की ओर से रविशंकर प्रसाद और स्मृति ईरानी जैसे नेता राहुल गांधी के आरोपों पर पलटवार कर चुके थे।
विपक्ष के सवालों से कब तक भागेंगे मोदी
सवाल ये है कि पीएम मोदी को जनता पर कितना भरोसा है। जनता उनकी बातों पर कितना और कब तक भरोसा करेगी। एक परिपक्व लोकतंत्र में पीएम का कर्तव्य है कि अगर उस पर किसी तरह के सवाल उठ रहे हैं तो वह उनका सामना करे और सही मंच पर उसका जवाब दे। लेकिन पीएम मोदी ने 2014 के बाद एक नई परंपरा शुरू की है। वे विपक्ष के आरोपों का जवाब ही नहीं देते और मीडिया के सवाल तो लेते नहीं है। ये मीडिया से अपने चुने गए समय पर चुने गए लोगों से चुने गए सवालों पर बात करते हैं।
राजनीतिक तौर पर बंटा भारत है मोदी की ताकत
अडानी और पीएम मोदी के बीच खास रिश्तों को लेकर मीडिया और राजनीतिक हलकों में लंबे समय से बातें हो रही हैं। ये एक संयोग नहीं हो सकता है कि 2014 के बाद अडानी की दौलत और उनका कारोबार जितनी तेजी से बढ़ा है उसके सामने दिन दूनी रात चौगुनी की कहावत भी फीकी पड़ जाती है। और फिर भी ये मोदी का आत्मविश्वा है या अतिआत्मविश्वाास कि वे इन आरोपों पर सफाई देने की जरूरत भी महसूस नहीं करते हैं। ये सही है कि पीएम मोदी की अगुवाई वाला भारत आज राजनीतिक तौर पर बहुत ज्यादा बंटा हुआ है। एक तबका है जो हर हाल में मोदी को पीएम के पद पर देखना चाहता है उसे मोदी पर किसी तरह का सवाल बर्दाश्त नहीं है। और एक तबका ऐसा भी है जो एक मिनट भी मोदी को पीएम के पद पर नहीं देखना चाहता है। उसे मोदी की अगुवाई वाली सरकार का एक भी काम देश हित में नहीं नजर आता है।
पीएम सवालों और आलोचना से परे नहीं
लेकिन भारत के हित में एक बीच का रास्ता ही हो सकता है जहां एक पीएम के तौर पर नरेंद्र मोदी के काम काज का बिना किसी पूर्वाग्रह के आकलन किया जाए और तथ्यों के आधार पर आलोचना भी हो और सवाल भी खड़े किए जाएं। भारत का कोई भी पीएम आलोचना और सवालों से परे न रहा है और न रहेगा। तो मोदी भी इसके अपवाद नहीं हो सकते हैं।
कब तक बेदाग रहेगा मोदी का दामन
लोकतंत्र के लिहाज से अहम सवाल ये है कि पीएम नरेंद्र मोदी से सवाल कौन करेगा और वे किसके सवालों के जवाब देंगे। पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार के पहले और अब दूसरे कार्यकाल में संसदीय लोकतंत्र की सीमाएं भी उजागर हो रही हैं। अगर किसी पीएम के पास मजबूत बहुमत है तो विपक्ष के पास जनता के पास जाकर अपनी बात रखने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं है। क्योंकि भारत में सरकारी एजेंसियां किसी पीएम के खिलाफ जांच करने में कितनी सक्षम हैं और कितनी इच्छाशक्ति दिखा सकती हैं इस पर गंभीर सवाल हैं। हां ये बात जरूर कही जा सकती है कि राफेट सहित कई भ्रष्टाचार के आरोप मोदी पर लगे हैं लेकिन वे कम से कम जनता की अदालत में बेदाग साबित हुए हैं। आम जनता का एक बड़ा तबका अब भी पीएम मोदी को बेदाग मानता है लेकिन ऐसा कब तक रहेगा ये कहा नहीं जा सकता है।
बीजेपी के संसाधनों पर उठ रहे हैं सवाल
ये बात सही है कि पीएम मोदी पर व्यक्तिगत भ्रष्टाचार के आरोप अब तक लगे हैं। लेकिन थोड़ी भी जागरूरता और राजनीतिक समझ वाले व्यक्ति को ये दिखता है कि पीएम मोदी की अगुवाई में बीजेपी दूसरी पार्टी के विधायकों को इस्तीफ दिला कर फिर उनको चुनाव जिता कर सरकार कैसे बना लेती है। बीजेपी चुनाव प्रचार में रैलियो और अभियानों पर जम कर पैसा खर्च करती है। और कोई राजनीतिक दल इस मामले में उसकी टक्कर में नजर नहीं आता है। तो सवाल तो उठता है कि इतना पैसा कहां से आता है और अगर ये पैसा राजनीतिक चंदे के तौर पर आता है तो ये चंदा कौन देता है। बीजेपी इसके कितने तथ्य लोगों के सामने रखती है और जो लोग बीजेपी को राजनीतिक चंदा देते हैं क्या वे दान के तौर पर ये रकम देते हैं या बदले में सत्ता के जरिए पीएम मोदी की अगुवाई वाली सरकार उनको फायदा उठाती है। आज इन सवालों को आरोप की शक्ल देने के लिए जरूरी तथ्य कम से कम मेरे पास नहीं हैं। किसी और के पास हैं तो अलग बात है। लेकिन ये चीजें हमेशा बिना सबूत के ही रहेंगी ये जरूर नहीं है। तब पीएम मोदी इन सवालों का सामना कैसे करेंगे। विपक्ष को कब तक दरकिनार करेंगे और मीडिया को कब तक खुद से दूर रखेंगे। ये ऐसे सवाल हैं जिनका सामना आज नहीं तो कल पीएम मोदी को करना होगा।