जलवायु परिवर्तन से पंजाब में फसलों को होगा भारी नुकसान, 24 फीसदी तक घट सकता है मक्का उत्पादन

जलवायु में जिस तरह से बदलाव आ रहे हैं उसका खामियाजा आने वाले कुछ वर्षों में पंजाब में रबी और खरीफ फसलों को भुगतना पड़ सकता है।

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नई दिल्ली: जलवायु में जिस तरह से बदलाव आ रहे हैं उसका खामियाजा आने वाले कुछ वर्षों में पंजाब में रबी और खरीफ फसलों को भुगतना पड़ सकता है। इस बारे में पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, लुधियाना के कृषि अर्थशास्त्रियों और वैज्ञानिकों द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि अगले 27 वर्षों में बदलती जलवायु के साथ पंजाब में मक्के का उत्पादन 13.1 फीसदी तक गिर सकता है।

वहीं जलवायु में आते यह बदलाव यदि भविष्य में भी जारी रहते हैं तो 2080 तक उत्पादकता को होने वाला यह नुकसान बढ़कर 24.4 फीसदी तक जा सकता है। वहीं यदि कपास की बात करें तो जहां 2050 तक उसका उत्पादन 11.4 फीसदी तक गिर सकता है, वहीं 2080 तक इसके उत्पादन में गिरावट का यह आंकड़ा बढ़कर 23.4 फीसदी तक जा सकता है।

इस बारे में विस्तृत जानकारी भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा प्रकाशित जर्नल ‘मौसम’ के नवीनतम अंक में सामने आई है। अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पिछले 35 वर्षों (1986 से 2020) के वर्षा और तापमान के आंकड़ों का इस्तेमाल किया है, जिससे पंजाब की पांच प्रमुख फसलों की पैदावार पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अनुमान लगाया जा सके।

शोध के जो नतीजे सामने आए हैं उनके अनुसार अधिकांश फसलों में औसत तापमान में वृद्धि के साथ उसकी उत्पादकता में गिरावट दर्ज की गई है।

क्या क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर है बेहतर विकल्प

वहीं यदि खाद्यान फसलों की बात करें तो जहां जलवायु में आते बदलावों और बढ़ते तापमान के चलते अगले 27 वर्षों में गेहूं उत्पादन में 5.67 फीसदी की गिरावट आ सकती है जो 2080 तक बढ़कर 6.5 फीसदी तक पहुंच सकती है।

इसी तरह वैज्ञानिकों ने पंजाब के धान उत्पादन में भी 1.7 फीसदी की गिरावट का अंदेशा जताया है, जो 2080 तक बढ़कर 2.7 फीसदी तक जा सकता है। शोध के मुताबिक बदलती जलवायु के साथ आलू उत्पादन में भी गिरावट आ सकती है, जिसके 2050 तक 4.7 फीसदी रहने की आशंका जताई गई है।

देखा जाए तो पंजाब में कृषि पर मंडराता यह खतरा न केवल पंजाब बल्कि पूरे देश में कृषि उत्पादन के लिए खतरा है। यदि पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें तो पंजाब देश का करीब 12 फीसदी अनाज उत्पादित करता है। यही वजह है कि इसे देश की फ़ूड बास्केट या अन्न भंडार के खिताब से भी नवाजा गया है।

शोध के मुताबिक जहां 1986 से 2020 के बीच जहां कई फसलों के सीजन में न्यूनतम तापमान में वृद्धि दर्ज की गई है, जोकि धान, मक्का और कपास जैसी फसलों के उत्पादन के लिए नुकसान देह है। आंकड़ों के मुताबिक इस जहां धान के सीजन के न्यूनतम तापमान में इस अवधि के दौरान 1.25 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है।

वहीं कपास के सीजन के न्यूनतम तापमान में 1.16 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि आई है। हालांकि आलू और गेहूं की फसलों के लिए बढ़ता न्यूनतम तापमान फायदेमंद हो सकता है। इसी तरह यदि इन 35 वर्षों की अवधि के दौरान बारिश से जुड़े आंकड़ों को देखें तो धान के सीजन (जून से सितम्बर) में वर्षा में 107.34 मिलीमीटर की गिरावट दर्ज की गई है। इसी तरह मक्के के सीजन (मई से अक्टूबर) में भी इसमें 257.13 मिलीमीटर की कमी रिकॉर्ड की गई है।

देखा जाए तो कृषि उत्पादन पर मंडराता जलवायु परिवर्तन का यह खतरा न केवल फसलों बल्कि किसानों के लिए भी बड़ा खतरा है। जो उनकी आय के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा के लिए भी संकट पैदा कर सकता है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने जलवायु में आते बदलावों और उनसे पैदा हुए खतरों से निपटने के लिए क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर पर ध्यान देने का सुझाव दिया है।

(साभार डाउन टू अर्थ)

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